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गेहूं की बुआई

गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण

गेहूं की फसल में खरपतवार नियंत्रण

गेहूं उत्तर भारत की मुख्य फसल है और इसमें खरपतवार मुख्य समस्या बनते हैं। खरपतवारों में मुख्य रूप से बथुआ, खरतुआ, चटरी, मटरी, गेहूं का मामा या गुल्ली डंडा प्रमुख हैं। जिन्हें हम खरपतवार कहत हैं उनमें मुख्य रूप से गेहूं का मामा फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है और इसका नियंत्रण ज्यादा बजट वाला है। बाकी खरपतवार बेहद सस्ते रसायनों से और शीघ्र मर जाते हैं। 

समय

Gehu ki fasal 

 विशेषज्ञों की मानें तो खरपतवार नियंत्रण के लिए सही समय का चयन बेहद आवश्यक है। यदि सही समय से नियंत्रण वाली दबाओं का छिड़काव न किया जाए तो उत्पादन पर 35 प्रतिशत तक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। धान की खेती वाले इलाकों में गेहूं की फसल में पहला पानी लगने की तैयारी है और इसके साथ ही खरपतवार जोर पकड़ेंगे। चूंकि किसान पहले पानी के साथ ही उर्वरकों को बुरकाव करते हैं लिहाजा ऐसी स्थिति में खरपतवारों को पूरी तरह से मारना और ज्यादा दिक्कत जदां हो जाता है। विशेषज्ञ 25 से 35 दिन के बीच के समय को खरपतवार नियंत्रण के लिए उपयुक्त मानते हैं। इसके बाद दवाओं का फसल पर दुष्प्रभाव भले ही सामान्य तौर पर न दिखे लेकिन उत्पादन पर प्रतिकूल असर होता है। 

कैसे मरता है खरपतवार

Gehu mai kharpatvar 

 खरपतवार को मारने के लिए बाजार में अनेक दवाएं मौजूद हैं लेकिन इससे पहले यह जान लेना आवश्यक है कि दवाओं से केवल खरपतवार ही मरता है और फसल सुरक्षित रहती है तो कैसे । फसल और खरपतवार की आहार व्यवस्था में थोड़ा अंतर होता है। फसल किसी भी पोषक तत्व का अवशोषण जमीन से सीमित मात्रा में करती है। खरतवारों के पौधों का विकास बहुत तेज होता है और वह कम खुराक से भी अपना काम चला लेते हैं। ऐसे में जो खरपतवारनाशी दवाएं छिड़की जाती हैं उनमें जिंक आदि पोषक तत्वों को मिलाया जाता है। इनका फसल पर जैसे ही छिड़काव होता है खरपतवार के पौधे उसे बेहद तेजी से ग्रहण करते हैं और दवा के प्रभाव से उनकी कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं। इधर मुख्य फसल के पौध इन्हें बेहद कम ग्रहण करता है और कम दुष्प्रभाव को झेलते हुए खुद को बचा लेता है।

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खरपतवार की श्रेणी

kharpatvar 

 खरपतवार को दो श्रेणियों में बांटा जाता है। गेहूं में संकरी और चौड़ी पत्ती वाले दो मुख्य खरपतवार पनपते हैं। किसान ऐसी दवा चाहता है जिससे एक साथ चौड़ी और संकरी पत्ती वाले खरपतवार मर जाएं। इसके लिए कई कंपनियों की सल्फोसल्फ्यूरान एवं मैट सल्फ्यूरान मिश्रित दवाएं आती हैं। इस तरह के मिश्रण वाली दवाओं से एक ही छिड़काव में दोनों तरह के खरपतवार मर जाते हैं। केवल चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार मारने के लिए टू फोर डी सोडियम साल्ट 80 प्रतिशत दवा आती है। 250 एमएल दवा एक एकड़ एवं 625 एमएल प्रति हैक्टेयर के लिए उपोग मे लाएं। पानी में मिलाकर 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करने से तीन दिन में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार मर जाते हैं। केवल संकरी पत्ती वाले गेहूंसा, गेहूं का मामा, गुल्ली डंडा एंव जंगली जई को मारने के लिए केवल स्ल्फोसफल्फ्यूरान या क्लोनिडाफाप प्रोपेरजिल 15 प्रतिशत डब्ल्यूपी 400 ग्राम प्रति एकड़ को पानी में घोलकर छिड़काव करें।

 

सावधानी

kitnashak dawai 

 किसी भी दवा के छिड़काव से पूर्व शरीर पर कोई भी घरेलू तेल लगा लें। दस्ताने आदि पहनना संभव हो तो ज्यादा अच्छा है। दवा को जहां खरपतवार ज्यादा हो वहां आराम से छिड़कें और जहां कम हो वहां गति थोड़ी तेज कर दें ताकि पौधों पर ज्यादा दवा न जाए। दवा छिड़कते समय खेत में हल्का पैर चपकने लायक नमी होनी चाहिए ताकि खेत में नमी सूखने के साथ ही खरपतवार भी सूखता चला जाएगा।

जानिए गेहूं की बुआई और देखभाल कैसे करें

जानिए गेहूं की बुआई और देखभाल कैसे करें

भारत में लगभग सभी राज्यों, नगरों, कस्बों,गांवों में रहने वाले लोग अपने भोजन में गेहूं का सबसे अधिक इस्तेमाल करते हैं। रबी सीजन में की जाने वाली गेहूं की फसल मुख्य फसल है। हमारे देश में बढ़ती जनसंख्या और मुख्य खाद्यान्न होने के कारण गेहूं की सबसे ज्यादा डिमांड रहती है। इस कारण गेहूं की कीमतें अब बाजार में तेजी से बढ़ती रहतीं हैं। इसलिये किसान भाइयों के लिए गेहूं की खेती सबसे उत्तम है।

गेहूं की बुआई कैसे करें

गेहूं की बुआई गेहूं की खेती के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्शियस के तापमान की आवश्यकता होती है। इससे अधिक तापमान में गेहूं की फसल नहीं की जा सकती है। गेहूं के पौधों के अंकुर निकलने के समय 20 से 22 डिग्री का तापमान अच्छा माना गया है। गेहूं की बढ़वार के लिए 25 से 27 डिग्री सेल्शियस तापमान जरूरी होता है। गेहूं के पौधों में फूल आने के समय अधिक तापमान नहीं होना चाहिये। सिंचित क्षेत्रों में लगभग सभी प्रकार की भूमि पर गेहूं की खेती की जा सकती है लेकिन जलजमाव वाली, लवणीय या क्षारीय भूमि में गेहूं की खेती नहीं की जानी चाहिये। वैसे बलुई दोमट या चिकनी दोमट मिट्टी को गेहूं की खेती के लिए उत्तम मानी जाती है। जहां पर भूमि की परत एक मीटर के बाद सख्त हो, वहां पर भी खेती नहीं करनी चाहिये।

गेहूं के लिए खेत की तैयारी कुछ ऐसे करें

खरीफ की फसल के बाद खेत की मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करें। उसके बाद दो या तीन क्रास जुताई कर मिट्टी को महीन बनायें। यदि खेत में मिट्टी के ढेले दिख रहे हों तो उसमें पाटा चलाकर मिट्टी को एकदम भुरभुरी कर लें। इसके बाद किसान भाइयों को चाहिये कि खेत में आवश्यकतानुसार गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद और उर्वरकों को डालें तथा अंतिम जुताई करें। दीमक,कटवर्म आदि लगते हों तो कीट नाशकों का उपयोग करें। अंतिम जुताई के बाद खेत को एक सप्ताह के लिए खुला छोड़ दें। इसके बाद बुआई करने से पहले खेत की नमी की स्थिति को देखें। नमी कम दिख रही हो तो पलेवा करके बुआई करें।

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भारत में क्षेत्रवार जलवायु अलग-अलग होने के कारण गेहूं की बुआई का समय भी अलग-अलग है। पश्चिमोत्तर क्षेत्रों में गेहूं की बुआई का समय नवम्बर का पूरा महीना उपयुक्त माना गया है। वहीं पूर्वोत्तर क्षेत्र में मध्य नवंबर से लेकर दिसम्बर के पहले पखवाड़े तक सही समय माना गया है। इसके बाद पछैती खेती  के लिए 15 दिसम्बर से 25 दिसम्बर तक बुआई की जा सकती है। इसके बाद बुआई करना जोखिम भरा हो सकता है। गेहूं की अच्छी खेती के लिए बीज भी अच्छा होना चाहिये। अच्छी पैदावार की किस्म वाला गेहूं का बीज होना चाहिये तथा सिकुड़े, छोटे, कटे-फटे दाने नहीं होने चाहिये। आम तौर पर एक हेक्टेयर के लिए 100 किलोग्राम बीजों की आवश्यकता होती है। पछैती खेती या कम उपजाऊ जमीन के लिए 125 किलो बीजों की आवश्यकता होती है। बीज प्रमाणित संस्थानों से लेना चाहिये और तीन वर्ष में गेहूं के बीज की किस्म बदल लेनी चाहिये।

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बुआई से पहले बीज का उपचार किया जाना अत्यावश्यक है। पहले गेहूं के बीज को थाइम या मैन्कोजेब से उपचारित करना चाहिये। इसके लिए प्रतिकिलो गेहूं के बीज के लिए 2 से 2.5 ग्राम थाइम या मैन्कोजेब की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरीफोस से शोधन करें। उसके बाद बीज को छाया में सुखाकर खेत में बोयें। गेहूं की अच्छी पैदावार के लिए बुआई के सर्वश्रेष्ठ तरीके को अपनाया जाना चाहिये। किसान भाइयों बुआई करने का सबसे अच्छा तरीका सीड ड्रिल या देशी हल से किये जाने को माना गया है। इससे कतार से कतार की दूरी व पौधों की दूरी भी नियंत्रित रहती है। इससे निराई गुड़ाई व सिंचाई करने में सुविधा होती है। साथ ही बीज आवश्यक गहराई तक जाता है और बीज भी कम लगता है। छिड़काव विधि से बीज भी अधिक लगता है।असमान पौधों के उगने से फसल प्रभावित होती है। बाद में कई अन्य परेशानियां आतीं हैं।

गेहूं की बुआई

गेहूं की बुआई के बाद फसल की देखभाल करनी जरूरी होती है। किसान भाइयों को चाहिये कि वे खेत की लगातार निगरानी करते रहें। सभी आवश्यक इंतजाम करते रहें। गेहूं की बुआई के बाद सबसे पहले खरपतवार नियंत्रण के लिए दो-तीन दिन में पैन्डीमैथालीन के घोल का छिड़काव करें। अक्सर देखा गया है कि गेहूं की फसल के साथ गोयला, प्याजी,चील, जंगली जई,गुल्ली डंडा व मोरवा जैसे खरपतवार उग आते हैं और वे फसल की बढ़त को रोक देते हैं। गुल्ली डंडा व जंगली जई का अधिक प्रकोप होने पर एक किलो आईसोप्रोटूरोन या मैटाक्सिरान को 500 लीटर पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़कें।

खाद एवं उर्वरक का प्रबंधन ऐसे करें

किसान भाइयों के लिए उर्वरक प्रबंधन करने से पहले मृदा का परीक्षण कराना सर्वोत्तम रहेगा। इससे उनको खाद एवं उर्वरक प्रबंधन पर उतना ही खर्च लगेगा जितने की जरूरत होगी। अनुमान से खाद व उर्वरक का प्रबंधन करना किसान भाइयों को महंगा भी पड़ सकता है और अपेक्षित परिणाम भी नहीं मिलते हैं। वैसे सिंचित क्षेत्रों में 125 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम पोटाश और 60 किलोग्राम फास्फोरस की आवश्यकता होती है। यदि पछैती फसल लेनी है तो उसके लिए 20 से 40 किलो पोटाश अधिक डालें। असिंचित क्षेत्रों में समय से खेती करने के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है।  बालियां आने से पहले यदि बरसात हो जाये तो 20 किलो नाइट्रोजन का छिड़काव करना चाहिये। सिंचित क्षेत्रों में बुआई के बाद नाइट्रोजन की दो तिहाई मात्रा जो बुआई के समय बचायी जाती है उसका आधा हिस्सा पहली सिंचाई के बाद और आधा हिस्सा दूसरी सिंचाई के बाद खेतों में डालने से पैदावार अच्छी होती है।

गेहूं की फसल में सिंचाई का बहुत ध्यान रखना पड़ता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पूरी फसल में छह बार सिंचाई करनी होती है।

  1. पहली सिंचाई बुआई के 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिये
  2. दूसरी सिंचाई 45 दिन के बाद उस समय करनी चाहिये जब कल्ले बनने लगे।
  3. तीसरी सिंचाई 65 दिन बाद उस समय करनी चाहिये जब गांठ बनने लगे।
  4. चौथी सिंचाई 85 से 90 दिन यानी तीन महीने बाद उस समय करनी चाहिये जब बालियां निकलने वाली हों।
  5. पांचवीं सिंचाई उस समय की जानी चाहिये जब दूधिया दाना पड़ रहा है। ऐसी स्थिति बुआई से 100 से 110 दिन बाद आती है।
  6. छठवीं और अंतिम सिंचाई 115 से 120 दिन बाद उस समय की जानी चाहिये जब दाना पकने वाला हो।

खरपतवार की देखभाल कैसे की जाये

गेहूं की फसल को गोयला, चील, प्याजी, मोरवा, गुल्ली डन्डा, जंगली जई, मंडूसी, कनकी, पोआघास, लोमड़ घास, बथुआ, खरथुआ, जंगली पालक, मैना, मैथा, सांचल,मालवा, मकोय, हिरनखुरी, कंडाई, कृष्णनील, चटरी मटरी जैसे खरपतवार प्रभावित करते हैं। इनको रोकने के लिए खरपतवारनाशी का घोल छिड़कना चाहिये। फसल के बीच में निराई गुड़ाई भी की जानी चाहिये।

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गेहूं की फसल को अनेक प्रकार की कीट व रोग भी लगते हैं। इनके नियंत्रण का भी प्रबंध किसान भाइयों को करना चाहिये।  दीमक, आर्मी वर्म, एफिड व जैसिडस तथा चूहे काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी रोकथाम बुआई के समय करनी चाहिये। उस समय एन्डोसल्फान का छिड़काव करना चाहिये। दीमक के लिए क्लोरीपाइरीफोस को सिंचाई के साथ देना होगा। रस चूसने वाले कीटों के नियंत्रण के लिए इकालक्स के घोल का छिड़काव करें। यदि झुलसा पत्ती धब्बा, रोली रोग, कण्डवा, मोल्या धब्बा जैसे रोग गेहूं की फसल में लगे हुए दिखाई दें तो मेन्कोजेब, रोली राग के लि गंधक का चूर्ण, कन्डुवे के लिए थीरम या वीटावैक्स से उपचार करें। चूहों के नियंत्रण के लिए एल्यूमिनियम फास्फाइड या राटाफीन की गोलियों का इस्तेमाल करें।
संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली जिसे पूसा संस्थान के नाम से जाना जाता है ने अपने 115 वर्षों के सफर में देश की कृषि को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हरित क्रांति के जनक के रूप में पूसा संस्थान में विभिन्न फसलों की बहुत सारी किस्में निकाली हैं जिनसे हम अपने देश की जनता को संतुलित आहार दे सकते हैं और अपने किसानों के लिए खेती को लाभदायक बना सकते हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पूसा सस्थान द्वारा निकाली गई कुछ फसलों की मुख्य किस्में व उनकी विशेषताओं के विषय में हम आपको बता रहे हैं।

संतुलित आहार की उन्नत किस्में

धान

Dhan ki kheti 1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140  दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है। 3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है। 4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. 5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है। 6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. ये भी पढ़े: धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है 7-पूसा बासमती 1609 का उत्पादन 46 कुंटल पकने का समय 120 दिन व बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रति प्रतिरोधी है। 8-पूसा बासमती 1637 का उत्पादन 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अवधि 130 दिन है । यह ब्लाइट प्रतिरोधी है. 9-पूसा बासमती 1728 का उत्पादन 41.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकाव  अवधि 140 दिन है। वह किसी भी बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है। 10-पूसा बासमती 1718 का उत्पादन 46.4 कुंटल प्रति हेक्टेयर बोकारो अवधि 135 दिन है। यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोध ही है। 11-पूसा बासमती 1692 का उत्पादन 52.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह पकने में 115 दिन का समय लेती है। उच्च उत्पादन जल्दी पकने वाली किस्म है।

 गेहूं

gehu ki kheti 1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है। 2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है। 3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है। 4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है। 5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है। 6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है। 7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल 8-एच आई 1620 से 49.1 कुंदन उत्पादन के 40 दिन में मिलता है। यह कंम पानी वाली किस्म है। 9-एच आई 1628 से 50.4 कुंतल उत्पादन 147 में मिलता है। 10-एच आई 1621 से 32.8 कुंतल उत्पादन 102 दिन में मिल जाता है यह पछेती किस्म है। 11-एचडी 3271 किस्म से कुंतल उत्पादन 104 दिन में मिलता है यह अति पछेती किस्म है पीला रतुआ प्रतिरोधी है। 12-एचडी 3298 से 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 104 दिन में मिल जाता है।

मक्का

Makka ki kheti 1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है। 2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है। 3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है। बाजरा (खरीफ) 1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।

चना

chana ki kheti 1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।

अरहर

arhar ki kheti 1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है। 2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है। 3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है। 4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।

मूंग (खरीफ)

Mung ki kheti 1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है। 2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है। 3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

मसूर

masoor ki dal 1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म  फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।

सरसों(रबी)

sarson ki kheti 1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। 2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है। 3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है। 4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3  कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है। 5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।

सोयाबीन (खरीफ)

soybean 1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। 2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।

लेखक

राजवीर यादव, फिरोज हुसैन, देवेंद्र के यादव एवं अशोक के सिंह
कानपूर आईआईटी द्वारा विकसित कम जल खपत में अधिक पैदावार करने वाला गेंहू का बीज

कानपूर आईआईटी द्वारा विकसित कम जल खपत में अधिक पैदावार करने वाला गेंहू का बीज

आईआईटी कानपुर (IIT Kanpur; Indian Institute of Technology) द्वारा गेहूं की नवीनतम किस्म को विकसित किया है, जिसकी बुआई करने के उपरांत 35 दिनों तक पानी लगाने की आवश्यकता नहीं होती है। उत्तर भारत के राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, हरियाणा एवं बिहार समेत ज्यादातर राज्य धान की कटाई करने के उपरांत गेहूं की बुआई करते हैं। दरअसल, अभी कई राज्यों में गेहूं की बुआई प्रारम्भ हो चुकी है, जिसके लिए किसान बाजार से उम्दा किस्म के गेहूं के बीज की खरीद कर रहे हैं  ताकि पैदावार ज्यादा से ज्यादा कर सकें। लेकिन कुछ किसान अभी तक धान की कटाई भी नहीं कर पाए हैं। अब किसानों के लिए एक ऐसे गेहूं की उम्दा किस्म बाजार में आ चुकी है, जो कि कम जल संचय करने के बावजूद भी अच्छी पैदावार करती है। फसल का उत्पादन बेहतरीन होता है।

इस गेंहू की किस्म की मुख्य विशेषता क्या हैं ?

आईआईटी कानपुर के द्वारा गेहूं की नवीन एवं उम्दा किस्म को विकसित करने के साथ साथ किसानों को अत्यधिक जल की आपूर्ति में खर्च होने से भी बेहद राहत दिलाई है, क्योंकि गेंहू की इस किस्म में बुवाई के उपरांत 35 दिनों तक पानी देने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। साथ ही यह गेहूं की किस्म, गर्मी एवं गर्म हवाओं से भी प्रभावित नहीं होती है, साथ ही इन गेंहू को झुलसने या सूखने का भी कोई खतरा नहीं होता। किसानों को गेंहू में पानी लगाने के लिए काफी समय का अंतराल तो मिलेगा ही, साथ ही जल की आवश्यकता भी कम होने के कारण उनकी लागत में कमी आयेगी।


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इस किस्म के गेंहु में कितने दिन तक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती ?

आईआईटी कानपुर इंक्यूबेटेड कंपनी एलसीबी फर्टिलाइजर (LCB Fertilizers) गेहूं का नैनो कोटेड पार्टिकल सीड तैयार कर चुका है, जिसकी विशेषता है कि इसकी बुवाई करने के उपरांत 35 दिनों तक फसल की सिंचाई करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। एलसीबी के शोधकर्ताओं ने बताया है कि अभी तक जो उनके द्वारा रिसर्च हुई है वह कभी भी निष्फल नहीं रही है। शोधकर्ताओं के द्वारा बताया गया है कि गेहूं के बीज में नैनो पार्टिकल एवं सुपर एब्जार्बेंट पॉलिमर की कोटिंग हुई है, जिसके तहत गेहूं पर लगा पॉलिमर 268 गुना ज्यादा पानी संचय करता है। अधिक जल संचय के कारण ही गेहूं की फसल में 35 दिनों तक सिंचाई की कोई आवश्यता नहीं होती है।

इस गेंहू की किस्म को तैयार होने में कितना समय लगता है ?

उपरोक्त में जैसा बताया गया है कि उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा सहित ज्यादातर जनपदों में धान की कटाई भी प्रारंभ हो चुकी है। अब गेहूं की बुवाई करते वक्त वहाँ के किसान इस गेंहू की किस्म के बीज को प्रयोग करें तो उनको जलपूर्ति के लिए करने वाले खर्च में बेहद बचत होगी। इस बीज की खासियत है कि यह 78 डिग्री तापमान को झेलने के बाद भी ज्यों की त्यों खड़े रहेंगे। साथ ही, इस किस्म के गेंहू की फसल 120 से 150 दिन में मात्र दो सिंचाई होने के बाद पककर कटाई के लिए तैयार हो जाती है।